सनातन धर्म के आदि पंचदेव में भगवान सूर्य नारायण भी आते हैं। हर शुभ कार्य में सूर्य पूजन का विधान है। हिंदू धर्म के वेदों-पुराणों में भी सूर्य की पूजा के बारे में बताया गया है। वहीं हर पौराणिक ग्रंथों में सूर्य की महत्ता का वर्णन का मिलता है। भारत का ओडिशा राज्य का प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर अद्भुत और उनमें सुन्दर कलाकृतियों की नकाशी की गई है। लेकिन 118 साल से बंद है ये मंदिर का प्रवेश द्वार, आज भी सरकार इस मंदिर का मुख्य प्रवेश द्वार को बंद रखा है
आज हम आपको ओडिशा में स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में बताएगें, यह मंदिर सूर्य भगवान को समर्पित है। इसीलिए इस मंदिर की नकाशी और संरचना भी सूर्य भगवन से जुड़ा हुआ। जो भारत के प्राचीन धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की भव्यता के कारण ये देश के सबसे बड़े 10 मंदिरों में से आता है। कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 23 मील दूर लबरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इसीलिए इस मंदिर की संरचना भी सूर्य भगवन से जुड़ा हुआ है।
इस मंदिर को इस प्रकार बनाया गया है मानों जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिए लगाए हों और इस रथ को ताकतवर 7 घोड़े खींच रहे हों, इस अद्भुत रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। इस मंदिर से जहां से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं। इस मंदिर के शिखर से उगते और ढलते समय सूर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। जब सूर्योदय होता है तो मंदिर से ये नजारा बेहद ही लुभावना और खूबसूरत नज़र आता है। मानों जैसे सूरज से निकलने वाली लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल-नारंगी रंग बिखेर दिया हो। वहीं यह मंदिर के आधारभूत को सुन्दरता प्रदान करते हुए, 12 विशाल पहिए यानि चक्र, साल के 12 महीनों को परिभाषित करता हैं।
यहां के स्थानीय लोग सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण कहते थे। यह मंदिर अपनी अनोखी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में मशहूर है और यह ऊंचे प्रवेश द्वारों से घिरा हुआ है। इसका मूख द्वार पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इस मंदिर के तीन प्रधान हिस्से- देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही सीध में हैं। सबसे पहले नाटमंडप प्रवेश द्वार आता है। उसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर स्थित है।
इस मंदिर के कई रहस्य भी है जिसके बारे में कई इतिहासकरों ने जानकारी इकट्ठा की। ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कुष्ठ रोग हो गया था। साम्ब को ऋषि कटक ने श्राप से बचने के लिए सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी। साम्ब ने मित्रवन में बारह वर्ष तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। जिसके बाद साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर बनवाने का निर्णय किया।
कोणार्क के बारे में कई मिथक और रहस्य भी है। लोगों का कहना है कि यहां पर आज भी नर्तकियों की आत्माएं नृत्य करती हैं। पुराने लोगों का कहना है कि यहां आज भी आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जोकि कभी यहां के राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।
इस चमत्कारी मंदिर को लेकर कई दावे किए गए है कि इस मंदिर का निर्माण एक सैंडविच के तौर पर किया था जिसके बीच में लोहे की प्लेट थे जिस पर मंदिर के पिलर रुके हुए थे। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर के ऊपर एक 52 टन का चुम्बक गुमद रखा गया था जो की इन खम्भों को संतुलित करता था।
इसी के चलते सूर्य भगवान् की जो प्रतिमा थी वो हवा में तैरती थी जिसे देख कर हर कोई हैरत में पड़ जाता था, ऐसा भी कहा जाता है इस चुम्बक को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा था। इस मंदिर के ऊपर रखे चुंबक के चलते समुंद्र से गुजरने वाली नाव भी जो की लोहे की बनी होती थी, इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते क्षतिग्रस्त हो जाती थी, इसलिए उस समय के नाविकों ने उस चुम्बक को हटा दिया। जिसके बाद ही अंग्रेज ने यहाँ कदम रख सके।