सीकर, राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में स्थित एक ऐतिहासिक शहर है । राजस्थान अपनी कला, संस्कृति और पधारो म्हारे देश रवैये के लिए मशहूर है। राजाओं का शहर-राजस्थान, भारत का सबसे अनमोल और रंगीन राज्य है। राजस्थान भारत का सबसे बड़ा राज्य है जहां पर आपार संस्कृति और परंपराए चली आ रही है। राजस्थान का अद्भुत दृश्य विश्व में विख्यात है। आज हम आपको राजस्थान के सीकर जिले में स्थित एक चमत्कारी और भव्य मंदिर,के बारे में बताएगें। जो श्री खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध है। वैसे तो खाटू श्याम बाबा के श्रद्धालुओ की कोई गिनती नहीं कि जा सकती है।
खाटू श्याम बाबा कौन हैं ?
बाबा खाटू श्याम का संबंध महाभारत काल से माना जाता है। खाटू श्याम बाबा पांडुपुत्र भीम और उनकी पत्नी हिडिम्बा के पोते व घटोत्कच और नागकन्या मौरवी के पुत्र हैं। ऐसा कहा जाता है कि जन्म के समय बर्बरीक जी के बाल बब्बर शेर के सामान दिखते थे इसी कारण, उनका नाम बर्बरीक पड़ा। एक पौराणिक कथा के अनुसार, बर्बरीक के अपार शक्ति और क्षमता से प्रभावित होकर भगवन श्रीकृष्ण ने इन्हें कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था।
आखिर बर्बरीक का नाम श्याम बाबा कैसे पड़ा ? आइये इस कहानी के माध्यम से जानते हैं।
शुरू करते है खाटू श्याम जी की कहानी महाभारत काल से।
महाभारत काल की कथा के अनुसार बर्बरीक का सिर राजस्थान राज्य के खाटू नगर में दफना दिया गया था। इसीलिए बर्बरीक जी, खाटू श्याम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हुए। बर्बरीक अपने बचपन में एक वीर और तेजस्वी बालक थे। बर्बरीक ने अपनी माँ मौरवी से युद्धकला, कौशल सीखकर निपुणता प्राप्त की। बर्बरीक महिसागर में माँ सिद्ध अंबिका की कठोर तपस्या करने लगे। माँ अंबिका ने बर्बरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर, बर्बरीक को तीन दिव्य अभेद बाण और कई अद्भुत शक्तियां प्रदान की। इस अभेद बाण से तीनों लोकों को जीता जा सकता था। लकिन इन तीनों बाणों को चलाने के लिए, एक विशेष धनुष की आवश्यकता थी। धनुष प्राप्त करने के लिए बर्बरीक ने, अग्नि देव की तपस्या की। तब अग्नि देव ने तपस्या से प्रसन्न होकर, बर्बरीक को धनुष प्रदान किया। महाभारत काल में जब कौरवों और पांडवों के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। तब इस युद्ध की जानकारी मिलते ही, बर्बरीक का भी इस युद्ध में भाग लेने की इच्छा हुई। तो बर्बरीक ने अपनी मां से युद्ध में जाने की आज्ञा व आशीर्वाद लिए।
उनकी मां जानती थी कि ये युद्ध कौरवों और पांडवों के बीच चल रहा है। उन्होंने सोचा कि कौरवों के पास, तो बड़े-बड़े शक्तिशाली योद्धा और विशाल नारायणी सेना हैं। तो पांडव इस विशाल सेना के सामने कमजोर पड़ जाएंगे। तब मौरवी ने बर्बरीक से एक वचन लिया, कि जो भी पक्ष तुम्हें हारता हुआ दिखेगा, तो तुम उस की ओर से यह युद्ध लड़ोगे। बर्बरीक ने अपनी मां को वचन दिया, और कहां, अगर जो भी पक्ष हार रहा होगा। मैं उसी की सहायता करूंगा।
उसके बाद बर्बरीक अपने साथ अभेद बाण और प्रिय नीले घोड़े पर सवार होकर कुरुक्षेत्र के युद्ध भूमि की ओर निकल पड़े। ये अब भगवान कृष्ण के लिए एक सबसे बड़ी समस्या थी, क्योंकि उस समय कौरवों युद्ध में हार रहे थे। बर्बरीक के मका को दिए वचन अनुसार, वह हारे का सहार बनेंगे। यदि बर्बरीक ने कौरवों की तरफ से युद्ध किया। तब कौरवों को हरा पाना संभव नहीं था।
जब बर्बरीक युद्ध मैदान की ओर जा रहे थे तो उनके मार्ग में श्री कृष्ण एक ब्राह्मण के रूप में बर्बरीक की परीक्षा लेना चाही। ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रश्न पूछा कि वो मात्र 3 बाण लेकर क्या युद्ध में लड़ने जा रहा है ? भगवन श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक उड़ाते हुए बोले मात्र 3 बाण से कोई युद्ध कैसे लड़ सकता है।
तो बर्बरीक ने कहा कि उनका एक ही बाण शत्रु की सेना को समाप्त करने में पूर्ण रूप से सक्षम है। उसके बाद भी यह तीर नष्ट न होकर वापस मेरे तरकश में आ जायेगा। बर्बरीक ने आगे कहा कि अगर मैं इन तीनों तीर का प्रयोग किया तो सम्पूर्ण जगत का विनाश किया जा सकता है।
तो ब्राह्मण ने बर्बरीक से एक पीपल के पेड़ की ओर इशारा करके कहा कि वो एक बाण से पेड़ के सारे पत्तों को भेदकर दिखाए। तभी बर्बरीक ने भगवान शिव का ध्यान करके एक बाण छोड़ दिया। उस बाण ने एक ही पल में पीपल के सारे पत्तों को भेद दिया सिर्फ एक पत्ते को छोड़ कर। क्योंकि भगवन श्री कृष्ण ने वह एक पत्ता अपने पैर के निचे दबा लिया था। तो वह बाण श्री कृष्ण के पैर के चारों तरफ घूमने लगा। तो बर्बरीक समझ गये कि तीर उसी एक पत्ते को भेदने के लिए ब्राह्मण के पैर के चक्कर लगा रहा है। बर्बरीक बोले – हे ब्राह्मण अपना पैर हटा लीजिये, नहीं तो ये आपके पैर को वेध देगा।
श्री कृष्ण बर्बरीक के इस पराक्रम से प्रसन्न हुए। तो उन्होंने, बर्बरीक से पूंछा कि किस पक्ष की तरफ से युद्ध करोगे। तभी बर्बरीक बोले कि उन्होंने लड़ने के लिए कोई पक्ष भी निर्धारित किया है, वो तो बस अपने माँ को वचन दिए अनुसार हारे हुए पक्ष की तरफ से लड़ेंगे। श्री कृष्ण ये सुनकर सोच में पर गये क्योंकि अगर बर्बरीक कौरवों की तरफ से लड़ेंगे तो उनके चमत्कारी बाण पांडवों पुत्रों का नाश कर देंगे।
इसीलिए ब्राह्मण बने श्री कृष्ण ने बर्बरीक से एक दान माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दिए। तभी ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उन्हें दान में बर्बरीक का सिर चाहिए। बर्बरीक इस अनोखे दान की मांग सुनकर आश्चर्यचकित रहे गए और समझ गये कि यह ब्राह्मण कोई आम व्यक्ति नहीं है। बर्बरीक ने कहां कि मैं वचन अनुसार अपने शीश का दान अवश्य करेंगे, लेकिन पहले ब्राह्मण देव को अपने वास्तविक रूप में आना होगा।
तभी भगवान कृष्ण अपने असली रूप में प्रकट हुए। बर्बरीक बोले कि हे देव मैं अपना शीश देने के लिए वचनबद्ध हूँ लेकिन मेरी यह इच्छा है कि यह युद्ध मैं अपनी आँखों से देखू। श्री कृष्ण ने बर्बरीक के वचनबद्धता से प्रसन्न होकर उसकी इच्छा को पूरा करने का वचन दिया। तभी बर्बरीक ने अपना शीश बिना सोचे काट कर कृष्ण को दे दिया।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को 14 देवियों के द्वारा अमृत से सींचकर युद्धभूमि के पास एक पहाड़ पर स्थिरता से रख दिया, जहाँ से बर्बरीक इस युद्ध का दृश्य देख सकें। जब महाभारत का यह युद्ध समाप्त हुआ और पांडव विजयी हुए। विजय के बाद पांडवों में यह बहस होने लगी कि इस विजय का श्रेय किस योद्धा को जाता है। तभी श्री कृष्ण ने कहा, बर्बरीक इस युद्ध के साक्षी रहे हैं अतः इस पूरी घटना का उत्तर उन्ही से जानना उचित होगा। तब परमवीर बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध की विजय का श्रेय एकमात्र श्री कृष्ण को जाता है, क्योंकि सब कुछ श्री कृष्ण की उत्कृष्ट और युद्धनीति के कारण ही सम्भव हुआ। विजय के पीछे भगवन श्री कृष्ण की माया थी।
बर्बरीक के सत्य वचन को सुनकर सभी देवताओं ने बर्बरीक पर पुष्पों की वर्षा की और उनके गुणगान गाने लगे। श्री कृष्ण ने वीर बर्बरीक की महानता से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा–हे वीर बर्बरीक आप महान हो। श्री कृष्ण ने आशीर्वाद दिया कि आज से आप मेरे श्याम नाम से प्रसिद्ध होंगे। कलियुग में आप श्री कृष्ण के अवतार स्वरूप में पूजे जायेंगे और अपने हारे हुए भक्तों कि मनोकामनां को पूर्ण करेंगे।
भगवान श्री कृष्ण का वचन सिद्ध हुआ और आज हम देखते भी हैं कि भगवान श्री खाटू श्याम बाबा जी अपने भक्तों पर निरंतर अपनी कृपा बनाये रखते हैं। बाबा श्याम अपने वचन अनुसार हारे का सहारा बनते हैं। इसीलिए जो सारी दुनिया से हारा-सताया गया होता है, वो अगर सच्चे मन से बाबा श्याम के नामों का जप, स्मरण करे तो उसका कल्याण अवश्य ही होता है।