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भारत में 5 नवम्बर 1556 में पानीपत का दूसरा ऐतिहासिक युद्ध

भारत में पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर 1556 को उत्तर भारत क्षेत्र के हिंदू सम्राट, शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य यानि हेमू और मुग़ल शासक अकबर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध हरियाणा के पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। इस युद्ध में अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए एक निर्णायक जीत साबित हुई थी।
By: MGB Desk
| 10 Nov, 2022 4:08 pm

खास बातें
  • पानीपत का दूसरा युद्ध 5 नवम्बर 1556 में |
  • ये युद्ध मुगलों और अफगानों के बीच हुआ था।
  • दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक हेमू थे।
  • आखिर अंत में युद्ध का क्या परिणाम निकला ?

देश में जब भी किसी लड़ाई की बात होती है। तो लोगों के दिमाग में सबसे पहले पानीपत की लड़ाई का नाम जुबान पर  आता है। जहाँ पानीपत की पहली लड़ाई में कई साल पहले अकबर के दादा यानि बाबर ने इब्राहिम लोदी को हराया था। वहीं भारत में पानीपत की दूसरी लड़ाई 5 नवम्बर 1556 को उत्तर भारत क्षेत्र के हिंदू सम्राट, शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य यानि हेमू और मुग़ल शासक अकबर के बीच लड़ा गया था। यह युद्ध हरियाणा के पानीपत के मैदान में लड़ा गया था। इस युद्ध में अकबर के सेनापति खान जमान और बैरम खान के लिए एक निर्णायक जीत साबित हुई थी। ये युद्ध दिल्ली पर वर्चस्व के लिए मुगलों और अफगानों के बीच चले रहा था। इस युद्ध का अंतिम परिणाम मुगलों के हाथों में गई और अगले तीन सौ वर्षों तक, दिल्ली का तख़्त मुगलों के हाथों में रहा।

दिल्ली के अंतिम हिंदू शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य यानि हेमू थे, हेमू वर्तमान हरियाणा के रेवाड़ी के रहने वाले थे। हेमू सन् 1545 से 1553 तक शेरशाह सूरी के पुत्र 'इस्लाम शाह' के सलाहकार थे। उन्होंने सन् 1553 से 1556 में इस्लाम शाह शासन के महामंत्री और सेनानायक के रूप में 22 युद्ध पर जीत हासिल की। जोकि शेरशाह सूरी के विरोधियों यानि अफगान के विद्रोहियों को समाप्त करने के लिए लड़ा गया था।

मुगल शासक अकबर के पिता हुमायूँ की दिल्ली में 24 जनवरी, 1556 में मृत्यु होने के बाद, उसके उत्तराधिकारी अकबर को मुग़ल बादशाह बनाया गया। उसके बाद 14 फरवरी, 1556 को पंजाब के कलानौर में अकबर का राज्याभिषेक किया गया और वह उस समय अकबर करीबन 13 साल के थे। मुग़ल शासन उस समय काबुल, कंधार, दिल्ली और पंजाब के कुछ ही हिस्सों तक सीमित था। ऐसा कहा जाता है कि अकबर और बैरम खान ने इस पानीपत के युद्ध में भाग नहीं लिया था और वह युद्ध के क्षेत्र से 5 कोस दूर सुरक्षित स्थान पर तैनात थे। क्योंकि  उन्हें 5000 प्रशिक्षित और सबसे वफादार सैनिकों के एक विशेष गार्ड की सुरक्षा दी गई थी।
 
मुगलों शासक की एक सेना टुकड़ी में 10,000 घुड़सवार होते थे, जिनमें से 5000 निपुण सैनिक थे जोकि हेमू की पहले पंक्ति की सेना से लड़ने के लिए तैयार थे। वहीं हेमू ने इस युद्ध ने अपनी सेना का नेतृत्व खुद स्वयं किया और सेना में 1500 हाथी और बेहतर तोपखानों को शामिल किया था। शासक हेमू ने 30,000 कुशल राजपूत योद्धा  और अफगान अश्वारोही सेना के साथ बेहतर क्रम से आगे बढ़ाया।

आखिर अंत में युद्ध का क्या परिणाम निकला ? आइए जानते है। 
दिल्ली के अंतिम हिन्दू शासक हेमू अपने सैन्य बलों से इस युद्ध में जीत की ओर बढ़ रहा था लेकिन अकबर की सेना ने हेमू की आँख में तीर मारकर उन्हें घायल कर दिया गया जिसकी वजह से वह बेहोश हो गए और इसी  कारण हेमू को हार का सामना करना पड़ा। मुग़ल की सेना ने हेमू को गिरफ्तार कर लिया और मौत की सजा दी गई। ताकि लोगों के दिलों में खौफ पैदा हो।

शासक हेमू के समर्थकों ने उस समय उसका शिरश्छेदन (Beheading) स्थल पर एक स्मारक का निर्माण करवाया जो आज भी पानीपत में जींद रोड के सौंधापुर  (Saudhapur) गाँव में मौजूद है।
 

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