गुलाम भारत की कई ऐसी ऐतिहासिक दास्तां हैं, जो इतिहास के पन्नों पर लिखने को मजबूर कर दिया। आज की पीढ़ी जब भी उन कहानियों को सुनती है तो मानों रगो में तेजी से खून दौड़ जाता है। तो कभी आंखों में आंसू आ जाते हैं, तो कभी क्रोध से भर उठाते हैं। गुलामी का एक ऐसा भी इतिहास है जो खूनी दास्तां को बया करता है, जिस समय अंग्रेजो के अत्याचार और भारतीयों के नरसंहार की दर्दनाक घटना जिसके बारें में कभी किसे ने सोचा भी न हो। जब भी वह दिन हर साल आता है, उस नरसंहार खूनी दास्तां की यादें लोगो के मन में ताजा हो जाती हैं। यह खूनी कहानी 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में हुआ था। हर भारतीय के लिए जलियांवाला बाग हत्याकांड बेहद दर्दनाक व दिल दहला देने वाली घटना थी।
जलियांवाला बाग नरसंहार कब हुआ था?
ये बात है इतिहास के 13 अप्रैल 1919 का पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग, इसी जगह पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर गोलियां बरसा कर खून की नदियां बहाई थीं। वह दर्दनाक घटना, जिसने कई परिवार खत्म हो गए। अंग्रेजो ने महिला, बच्चे, बूढ़े तक, किसे को नहीं छोड़ा। उन्हें उस मैदान को बंद करवा कर गोलियों से छलनी कर दिया।
क्यों हुआ था जलियांवाला बाग नरसंहार ?
क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए, अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी समेत कई मुद्दों के खिलाफ जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया था। उस दिन शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था। लेकिन तब भी हजारों की संख्या में भारतीय इकट्ठे हुए थे। उस भीड़ को देखकर ब्रिटिश हुकूमत बौखला गई थी। उनको लगा कि कहीं भारतीय दोबारा से 1857 की क्रांति को दोहराने की तैयारी में तो नहीं। ऐसी नौबत आने से पहले ही ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों की इस आवाज को दबाने के लिए क्रूरता की सभी हदों को पार कर दिया था। सभा के दौरान ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर ने लोगों पर अंधाधुंध गोलीबारी का आदेश दे दिया। ब्रिटिश के सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं बिना चेतावनी के हजारों लोगों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दी।
पंजाब के अमृतसर का दिल देहल गया। इस गोलीबारी से घबराई औरतें अपने बच्चों को लेकर जान बचाने के लिए इधर-उधर और मैदान के कुएं में कूद गई थीं। क्योंकि बाहर निकलने का एक ही रास्ता था वह भी काफी पतला था, इस वजह से बहुत से लोग भगदड़ में कुचले गए और हजारों लोग गोलियों की चपेट में आगे थे। कई मसखत के बाद भी लोगों की जान नहीं बचपई और पूरा कुआं देखते ही देखते लाशों से भर गया था। यह घटना बहुत तेजी से पूरे देश ने फैल गया। इसी से देश की स्वतंत्रता संग्राम का रुख मोड़ दिया।
वहीं जलियांवाला बाग में शहीद होने वाले लोगों का सही आंकड़ा आज तक भी पता नहीं चल सका है। डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सूची है, तो वहीं जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है। लेकिन वहीं ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया था। इस आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा भारतीय शहीद हुए थे और करीबन 2000 से अधिक लोग घायल हुए थे।