चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र 'बिन्दुसार' सम्राट बना। यूनानी लेखकों के अनुसार उसका नाम 'अमित्रकेटे' था। 'अमित्रकेटे' को संस्कृत में - 'अमित्रघात' या 'अमित्रखाद' अर्थात "शत्रुओं का नाश करने वाला"। यह उपाधि दक्षिण में उनके सफल सैनिक अभियानों के दौरान दी गई थी, क्योंकि उत्तर भारत पर तो उनके पिता चंद्रगुप्त मौर्य ने पहले से ही जीत प्राप्त कर लिया था। बिंदुसार का विस्तार कर्नाटक के आसपास क्षेत्रों में जाकर रुक गया था, क्योंकि दक्षिण के चोल, पांड्य व चेर सरदारों और राजाओं के मौर्यो से अच्छे संबंध थे।
चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद उनका पुत्र बिन्दुसार सम्राट बना। तिब्बती लामा तारानाथ तथा जैन कथा के अनुसार चाणक्य बिन्दुसार के भी मंत्री रहे । चाणक्य ने 16 राज्य के राजाओं और सामंतों को समाप्त कर दिया और बिन्दुसार को पूर्वी समुद्र से पश्चिमी समुद्र पर्यन्त भू-भाग का अधिपति बनाया। क्योंकि हो सकता था कि चंद्रगुप्त की मृत्यु के बाद कुछ राज्यों ने मौर्य सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर देते। गुरु चाणक्य ने सफलतापूर्वक उनका दमन कर दिया। दिव्यावदान के अनुसार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला में ऐसे ही विद्रोह का उल्लेख मिलता है। इन विद्रोह को शान्त करने के लिए बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक को भेजा था। जिसके पश्चात् अशोक खस देश गया। 'खस' लोग कश्मीर से नेपाल के आस-पास के प्रदेश में रहते थे। तारानाथ के अनुसार खस्या और नेपाल के लोगों ने विद्रोह किया और अशोक ने इन प्रदेशों के विद्रोह को समाप्त कर दिया और जीत का परचमं लहराया। स्ट्राटो के अनुसार सेल्यूकस के पुत्र 'एण्टियोकस प्रथम' ने अपना राजदूत 'डायमेचस' को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था। प्लिनी के अनुसार 'टॉलेमी द्वितीय' फिलाडेल्फस ने डायोसियस को बिन्दुसार के दरबार में भेजा था। अपने पिता की तरह बिन्दुसार भी चेष्टावान था।
विदेशियों के साथ अशोक ने शान्ति और मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाया। सेल्यूकस वंश के राजा तथा अन्य यूनानी शासकों के साथ चंद्रगुप्त मौर्य का अच्छा सम्बन्ध था। बिन्दुसार भी अपने पिता कि तरह दार्शनिकों का आदर करते थे। जैन ग्रंथ में चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र बिन्दुसार को सिंहसेन कहा गया है। ऐथेनियस के अनुसार बिन्दुसार ने सीरिया के शासक 'एण्टियोकस प्रथम' से मदीरा, सुखे अंजीर एंव दार्शनिक भेजने की प्रार्थना की। लेकिन सीरिया के शासक ने दार्शनिक को नहीं भेजा। दिव्यावदान के अनुसार आजीवक परिव्राजक बिन्दुसार की सभा को सुशोभित करते थे।
इसके साथ ही कुछ ऐसे प्रमाण भी मिलते हैं जो बिंदुसार की क्षमता-शक्ति से लोगों का विश्वास उठ गया, क्योंकि बिन्दुसार के शासन में तक्षशिला के लोगों ने दो बार विद्रोह किया। पहली बार विद्रोह बिन्दुसार के बड़े पुत्र सुशीम के कुप्रशासन के कारण हुआ था और दूसरे विद्रोह का कारण अज्ञात है परन्तु बिन्दुसार ने अपने पुत्र अशोक से यह विद्रोह दबा दिया। ऐसा माना जा सकती है जो सामाज्य विस्तार उसे अपने पिता चन्द्रगुप्त मौर्य से मिला था, उसे सँभालना बहुत बड़ा काम था। बिंदुसार के लिए उनका सबसे बड़ा जीवन सुख "अंजीरों और अंगूर की शराब" में था, जो उसने अपने मित्र यूनान के राजा एंटिओकस से मँगवाई थीं। उसे इस बात का श्रेय देना थोड़ा कठिन है कि उसने स्वयं कोई विजय प्राप्त करके राज्य में कोई वृद्धि किया हो।
पुराणों के अनुसार बिन्दुसार ने 24 वर्ष तक शासन किया है, किन्तु महावंश के अनुसार 27 वर्ष तक। डॉ. राधा कुमुद मुकर्जी ने बिन्दुसार की मृत्यु तिथि 272 ईसा पूर्व निर्धारित की है। और कुछ अन्य विद्वान् यह मानते हैं कि बिन्दुसार की मृत्यु 270 ईसा पूर्व में हुई थी। बिन्दुसार को 'पिता का पुत्र और पुत्र के पिता' के नाम से जाना जाते है क्योंकि वह प्रसिद्ध व पराक्रमी शासक चन्द्रगुप्त मौर्य के पुत्र एवं महान अशोक सम्राट के पिता थे।