मुगल बादशाह औरंगजेब की मृत्यु के बाद मराठों का अचानक उदय हुआ। मराठों ने दक्कन में अपने सभी क्षेत्रीय लाभ उलट दिए और भारत के एक बड़े हिस्से पर विजय प्राप्त की। नादिर शाह द्वारा भारत पर आक्रमण से गिरावट तेज हो गई, जिसने 1739 में तख्त-ए-तौस (मयूर सिंहासन) और कोहिनूर हीरा भी छीन लिया। अहमद शाह दुर्रानी ने मराठों पर हमला करने की योजना बनाई जब उनके बेटे को लाहौर से बाहर निकाल दिया गया। 1759 के अंत तक, दुर्रानी अपने अफगान कबीलों के साथ लाहौर और साथ ही दिल्ली पहुंचे और दुश्मन की छोटी चौकियों को हरा दिया। दो सेनाएँ करनाल और कुंजपुरा में लड़ीं जहाँ पूरी अफगान सेना को मार दिया गया या गुलाम बना लिया गया। कुंजपुरा गैरीसन के नरसंहार ने दुर्रानी को अंदर तक प्रभावित किया कि उसने मराठों पर हमला करने के लिए नदी पार करने का आदेश दिया। कई महीनों तक छोटी-छोटी लड़ाइयाँ चलती रहीं और अंतिम युद्ध के लिए दोनों तरफ की सेनाएँ इकट्ठी हुईं। लेकिन मराठों का खाना खत्म हो रहा था।
18वीं शताब्दी की सबसे उल्लेखनीय ऐतिहासिक लड़ाइयों में से एक, पानीपत का तीसरी युद्ध, साल 1761 में मराठा की शक्ति बढ़ रही थी और उनके नियंत्रण में उत्तर सिंधु से लेकर उपमहाद्वीप के दक्षिणी तक फैला हुई था। मराठो का दिल्ली पर भी नियंत्रण था क्योंकि मुगल सम्राट केवल नाम के शासक रह गए थे।
वहीं अहमद शाह दुर्रानी, जिन्हें अहमद शाह अब्दाली के नाम से भी जानते है। साल 1747 ईस्वीं में अफगानिस्तान में दुर्रानी साम्राज्य की स्थापना की थी और उनके नियंत्रण में लाहौर सहित पंजाब और सिंध भी था।
पानीपत का तीसरा युद्ध, दिल्ली से लगभग 97 किलोमीटर दूर पानीपत (हरियाणा में) में अफगानी सेना और मराठा सेना के बीच हुई थी। अफगानों सेना का नेतृत्व स्वयं उनके राजा अहमद शाह दुर्रानी कर रहे थे। जिन्होंने दोआब के रोहिल्ला अफगानों और अवध के नवाब शुजा-उद-दौला से मदद ली थी। वहीं दूसरी ओर, मराठा, सिखों, जाटों और राजपूतों का समर्थन पाने में असफल रहे। क्योंकि मराठा भारी संख्या में थे तो भी दुर्रानी की सेना से हार गए थे। लड़ाई कई दिनों तक चली और दोनों पक्षों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा।
मराठा के सेनापति सदाशिवराव भाऊ थे। मराठा पक्ष में अन्य महत्वपूर्ण कमांडर विश्वासराव जैसे पेशवा बालाजी, बाजीराव के पुत्र, मल्हारराव होल्कर और महादजी शिंदे थे।
सदाशिवराव भाऊ और विश्वासराव पेशवा हजारों मराठों के साथ इस युद्ध में मारे गए थे। अफगानों सेना ने हारने वाले पक्ष की कई महिलाओं और बच्चों को गुलाम बना लिया था। लेकिन 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को उनकी अपनी मां और बहनों के सामने उनका सर कलम कर दिया गया हालाँकि पानीपत की तीसरी लड़ाई ने भारत में सत्ता के समीकरणों को बदल दिया, लेकिन अफगान शायद ही आगे भारत पर शासन कर सके। इसी पराजय के कारण पेशवा की मृत्यु, एक सदमे से हो गई। इस युद्ध के बाद दुर्रानी अपनी राजधानी लौट गया और दुबारा भारत देश में नहीं गया। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के रॉबर्ट क्लाइव को आदेश दिया था कि मुगल शाह आलम द्वितीय को भारत के सम्राट के बना दें। भले ही मराठा शासक को रोक दिया गया था, लेकिन दस साल के भीतर ही दिल्ली को वापस अपने अधिकार में ले लिया।