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पौराणिक कथा के अनुसार छठ पूजा की परंपरा रामायण और महाभारत से प्रचलित हैं।

बिहारियों के लिए छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिनों तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली छठ पूजा चैत्र यानि अप्रैल के महीने में और दूसरी छठ पूजा  कार्तिक यानि अक्टूबर-दिसंबर में मनाया जाता है। यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इसका एक अलग ही ऐतिहासिक महत्व भी है।
By: MGB Desk
| 28 Oct, 2022 4:13 pm

खास बातें
  • बिहार में छठ-पूजा को अन्य त्योहारों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है
  • महाभारत काल में द्रोपदी ने भी रखा था छठ व्रत
  • महाभारत काल से भी छठपर्व का साक्ष्य मिलता है। 
  •  आखिर छठ का पौराणिक महत्व क्या

बिहार में छठ-पूजा को अन्य त्योहारों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है। बिहारियों के लिए छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिनों तक चलता है। नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। पहली छठ पूजा चैत्र यानि अप्रैल के महीने में और दूसरी छठ पूजा  कार्तिक यानि अक्टूबर-दिसंबर में मनाया जाता है। यह पर्व पारिवारिक सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए मनाया जाता है। इसका एक अलग ही ऐतिहासिक महत्व भी है।

पौराणिक कथा के अनुसार छठ पूजा की परंपरा रामायण और महाभारत से प्रचलित हैं। ऐसा मानना जाता है की, जब राम जी और माता सीता, जब 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तब रावण वध, के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेशानुसार सूर्य यज्ञ करने का फैसला लिया था। इस पूजा के लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को यज्ञ के लिए आमंत्रित किया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। इसी लिए माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्य भगवान की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान करके सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत काल से भी छठपर्व का साक्ष्य मिलता है। 
हिंदू मान्यता के अनुसार छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल से मानी जाती हैं। ऐसा मानना जाता हैं कि छठ पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र यानि कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की परंपरा प्रचलित है।

महाभारत काल में द्रोपदी ने भी रखा था छठ व्रत
छठ पर्व के बारे में एक और कथा विद्यमान है। इस कहानी में जब पांडव सारा राजपाठ जुए में हार गए थे, तब द्रोपदी ने छठ का व्रत रखा था। इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडवों को सब कुछ वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का मानना जाता है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई हैं और यह कही न कही सत्य हैं। 

 आखिर छठ का पौराणिक महत्व क्या है
इन कथाओं के अलावा एक और कथा भी प्रचलित है। पुराणों में लिखा हैं कि, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई भी संतान नहीं थी। इसके लिए उसने हर कोशिश कर डाले, लेकिन कोई परिणाम नहीं हुआ। तब राजा को संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप ने पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का विचार दिया। इस यज्ञ के बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया, लेकिन वह मरा पैदा हुआ था। राजा के मृत बच्चे की सूचना से पूरे नगर में शोक छा गया। ऐसा कहा जाता है कि जब राजा मृत बच्चे को दफनाने की तैयारी कर रहे थे, तभी आसमान से एक ज्योतिर्मय विमान धरती पर उतरा आया। इसमें बैठी देवी ने कहा, 'मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।' इतना कहकर देवी ने नवजात शिशु के मृत शरीर को स्पर्श किया, जिससे वह जीवित हो उठा। उसके बाद से ही राजा ने अपने राज्य में यह त्योहार मनाने की घोषणा कर दी।
 

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